Wednesday, 16 January 2013

रचना - तुम्हारा साथ


दर्द ने करवट ली है,
दिल ने फिर आह भरी
सपनों की इस टूटन में,
जाने क्यों तुम याद आए।

आंख में आंसू, दिल में छाले,
यादों की बरसात हुई
तन्हाई की इस बेला में,
जाने कैसे तुम साथ हुए।

पक्षी का कलरव भी है,
फाल्गुन की कामुक अंगड़ाई
पवन की इस शीतलता में,
कटुता का एहसास हुए।

तुम थे तो क्या गम था,
तुम साथ नहीं तो क्या गम
तुम तो तुम हो मैं क्या,
मैं भी अब तो तुम हुए।

तुम बिन जीवन की इस बेला में,
जीने का एहसास नहीं
सुर छूटा, ताल भी टूटा,
रंग सभी बदरंग हुए।
                          - बृजेश नीरज

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