घोंघा भी चलता है तो रेत में, धूल में उसके चलने का निशान बनता है फिर मैं तो एक मनुष्य हूं। कुमार अंबुज
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ब्लागर
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteये पैगाम तो एक बहाना हैं !
इरादा तो आपको हमारी याद दिलाना हैं !!
आप याद करे या न करे कोई बात नहीं !
पर आपकी याद आ रही हैं बस इतना बताना हैं !!
वाह राजेन्द्र जी! आपकी पंक्तियां बहुत सशक्त हैं। बहुत खूब! आपका आभार!
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
इंजीनियर प्रदीप कुमार साहनी अभी कुछ दिनों के लिए व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है और आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (03-04-2013) के “शून्य में संसार है” (चर्चा मंच-1203) पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर..!
गुरूदेव आपका आभार!
DeleteBahut khoob likha hai
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ReplyDeleteबहुत सुंदर
आपका आभार!
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ReplyDeleteबहुत सुंदर
धन्यवाद!
Deleteये इंतज़ार भी कितना तक़लीफ़ देता है...
ReplyDeleteअच्छी रचना!
~सादर!!!
बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteआदरणीय श्रीबिजेशजी,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना है," तू नजर आये तो मुझे कुछ आराम हो.." बहुत अच्छा जी, ऐसेही लिखते रहिए और आनंद बांटते रहिए, घन्यवाद।
मार्कण्ड दवे।
आपका आभार!
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