Tuesday, 15 January 2013

रचना - तुम


हवाओं की मस्ती गुदगुदाती तो होगी
जुल्फें हवा में लहराती तो होगी
अब भी बात करते हुए तुम
मुस्कुराती होगी, खिलखिलाती तो होगी

नींद में सपना आता तो होगा
सोते में तकिया दबाती तो होगी
टूटता होगा तारा कभी जब
दुआ के लिए हाथ उठाती तो होगी

हमने भी कभी चाहा था तुमको
पल वो कभी याद करती तो होगी
मेरी उन बातों पर अब भी
दर्पण में चेहरा निहारती तो होगी
                      - बृजेश नीरज

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