इस रात का सबेरा,
कभी तो हो
तू मिल सके
मुझको, कभी तो हो
हर तरफ अंधेरा,
चीखता सन्नाटा
एक किरन नजर
आए, कभी तो हो
वक्त की दीवारों
में कैद आवाजें
हवा में गूंजे
फिर नारे, कभी तो हो
ओस की बूंदों
से प्यास नहीं बुझती
कोई बादल बरस
जाए, कभी तो हो
उम्र भर कोई
इंतजार नहीं करता
जरा उम्मीद
नजर आए, कभी तो हो
फकत वादों से
तो पेट नहीं भरता
एक रोटी मिल
जाए, कभी तो हो
दर्द का सैलाब
है इन आंखों में
थोड़ी हंसी छलक
जाए, कभी तो हो
वो दरिया भी
अब सूखने को है
ये बर्फ पिघल
जाए, कभी तो हो
- बृजेश नीरज
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