Thursday, 10 January 2013

रचना - जिंदगी


बहुत तलाशा जिंदगी के मायने
इंतजार से ज्यादा, क्या कम होगा

बदहवास से यूं ही दौड़ते भागते
सफर जाने कहां खतम होगा

वह जो दरिया था सूखने लगा
अब पानी कहां से मयस्सर होगा

यहां जमीं भी दरकने सी लगी
ये मकान भी अब खंडहर होगा

वो परिंदा जिसे भूनकर खा गए
उसके घर में आज मातम होगा

उनका रसूख अभी भी कायम है
कौम का दर्द कुछ कम रहा होगा
      - बृजेश नीरज


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