Friday, 14 December 2012

कविता - मिथक



इस रात का सबेरा नहीं है
तू मिलेगा आसरा नहीं है।

मन्दिर मस्जिद आरती अजानें
सब कुछ है आस्था नहीं है।

टूटे मिथक सभी जिंदगी के
सांसें हैं लालसा नहीं है।

मौसम का देखो ये मिजाज
चंदा नहीं है सूरज नहीं है।

                   -बृजेश नीरज

2 comments:

  1. यह पहला मौका है जब मुझे आपकी हिन्दी/लेख कविता यहां पर गोचर हो पाया है।अच्छा लगा.
    सर मिथक का मतलब?

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    Replies
    1. मिथक - वह पारंपरिक कहानी जिसे इतिहास में भी जगह मिली हो

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