Friday, 14 December 2012

क्षणिकाएं


आम आदमी


छत को देखते
नापता है आकाश
कमरे की फर्श के सहारे
भांपता है धरती का व्यास।

देखा है ताजमहल
और अमरीका भी
तस्वीरों में।

                  -        बृजेश नीरज

विछोह

  (1)


अपने घर
परिवार के बीच
खिलखिलाती होगी
तुम।

ख्याल भी नहीं होगा
कि कहीं कोई है
तन्हा
तुम्हारे ख्यालों में।

बेकरार है
तुम्हारे दीदार को
सुनने को
तुम्हारी हल्की सी आवाज,
थोड़ी सी बात।

                             - बृजेश नीरज

(2)


पतझड़ में
पेड़ों से पत्तों का गिरना,
नए बौर से लदे
पौधों का झूमना,
फागुन की मस्ती,
हवाओं की अठखेलियां,
शाम की शीतलता;

सब कुछ
पहले जैसा ही है,
फर्क है तो इतना
तुम साथ नहीं।

                            - बृजेश नीरज









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