Thursday, 13 December 2012

निबन्ध



मित्र

आजकल पश्चिमी देशों की नकल पर भारत में भी मातृ दिवस, पितृ दिवस, प्रेम दिवस तथा मित्रता दिवस मनाने का रिवाज चल पड़ा है। फैशन और कथित नयी सभ्यता के इन प्रतीकों का प्रचार माध्यम भी जोर शोर से प्रचार करते हैं ताकि उनको विज्ञापन प्रदान करने वाली कम्पनियों के उत्पाद खरीदने के लिए ग्राहक जुटाये जा सकें।
भारतीय समाज बहुत भावना प्रधान है इसलिए यहां विचारधारा भी फैशन बनाकर बेची जाती है। रिश्तों को लेकर पूर्वी समाज बहुत भावुक होता है इसलिए यहां के बाजार ने सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों के नाम पर लोगों की जेब ढीली करने के लिए इन्हें साधन के रूप में इस्तेमाल किया है।
पश्चिमी समाज हमेशा दिग्भ्रमित रहा है-इसका प्रमाण यह है कि वहां भारतीय अध्यात्म के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है इसलिए वहां उन रिश्तों को पवित्र बनाने के प्रयास हमेशा किए जाते रहे हैं क्योंकि वहां इन रिश्तों की पवित्रता और अनिवार्यता समझाने के लिए कोई अध्यात्मिक प्रयास नहीं हुए हैं जिनको पूर्वी समाज अपने धर्म के आधार पर सामाजिक और पारिवारिक जीवन के प्रतिदिन का भाग मानता है।
  मानवीय संवेदनाओं के प्रति हमारा समाज पहले से ही सजग रहा है। इसका उदाहरण इसी बात से मिलता है कि मित्रता का गुणगान पश्चिमी सभ्यता में आज किया जा रहा है जबकि इसकी परम्परा हमारे यहां वर्षों पुरानी है राम और कृष्ण के भी युग से पहले हम मित्र धर्म का पालन करना सीख चुके थे। हमारे आध्यात्मिक संत मित्रता के संबंध में हमें पहले ही सीख दे चुके हैं। संत कबीर कहते हैं कि-
             कपटी मित्र कीजिए, पेट पैठि बुधि लेत
             आगे राह दिखाय के, पाछे धक्का देति।
अर्थात् कपटी आदमी से मित्रता कभी कीजिए क्योंकि वह पहले हमसे नजदीकियां बढ़ाकर सभी भेद जान लेता है और फिर आगे का रास्ता दिखाकर पीछे से धक्का दे देता है।
  सच बात तो यह है कि मित्र ही मनुष्य को उबारता है और मित्र ही डुबोता है इसलिए अपने मित्र बनाते समय उनके व्यवहार के आधार पर पहले उनका आकलन करना बहुत आवश्यक होता है। हमसे प्रतिदिन अनेक लोग मिलते हैं पर वह मित्र नहीं कहे जा सकते। आजकल के युवाओं को तो मित्र की पहचान ही नहीं है। साथ साथ घूमना, पिकनिक मनाना या शैक्षणिक विषयों का अध्ययन करना मित्रता का प्रमाण नहीं है। ऐसे अनेक युवक शिकायत करते हुए मिल जाते हैं कि अमुक के साथ हम रोज पढ़ते थे पर वह हमसे नोट्स ले लेता था पर अपने नोट्स नहीं देता था। ऐसे युवक युवतियां जब अपने मित्र से हताश होते है तो उनका हृदय टूट जाता है। इतना ही नहीं उनको सारी दुनिया ही दुश्मन नजर आती है जबकि इस रंगीली दुनिया में ऐसा भी देखा जाता है कि संकट पड़ने पर अजनबी भी सहायता कर जाते हैं चाहे भले ही अपने मुंह फेर लेते हों। इसलिए किसी एक से धोखा खाने पर सारी दुनिया को गलत कभी नहीं समझना चाहिए। इससे बचने का यही उपाय है कि सोच समझकर ही मित्र बनायें। अगर किसी व्यक्ति की आदत ही दूसरे को धोखा देने की हो तो फिर उससे मित्र धर्म के निर्वहन की आशा करना ही व्यर्थ है। इस विषय में संत कबीरदास जी का कहना है कि-
           कबीर तहां जाइए, जहां चोखा चीत
            परपूटा औगुन घना, मुहड़े ऊपर मीत।
अर्थात ऐसे व्यक्ति या समूह के पास ही जायें जिनमें निर्मल मन का अभाव हो। ऐसे व्यक्ति आपके सामने मित्रवत व्यवहार करते हैं परन्तु पीठ पीछे आपके अवगुणों का बखान करके आपको बदनाम करते हैं। जिनसे हम मित्रता करते हैं उनसे सामान्य वार्तालाप में हम ऐसी अनेक बातें कह जाते हैं जो घर परिवार के लिए महत्वपूर्ण होती हैं और जिनके बाहर आने से संकट खड़ा हो सकता है। कथित मित्र इसका लाभ उठाते हैं। अगर आपराधिक इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पायेंगे कि अपराध और धोखे का शिकार आदमी मित्रो की वजह से ही होता है। अतः प्रतिदिन कार्यालय, व्यवसायिक स्थान तथा शैक्षणिक स्थानों पर मिलने वाले लोग मित्र नहीं होते इसलिए उनसे सामान्य व्यवहार और वार्तालाप तो अवश्य करना चाहिए परन्तु उनको परखे बिना मित्र नहीं मानना चाहिए।

No comments:

Post a Comment

कृपया ध्यान दें

इस ब्लाग पर प्रकाशित किसी भी रचना का रचनाकार/ ब्लागर की अनुमति के बिना पुनः प्रकाशन, नकल करना अथवा किसी भी अन्य प्रकार का दुरूपयोग प्रतिबंधित है।

ब्लागर