Monday, 5 November 2012

कविता - मित्र के नाम






जब 
स्वप्न नदी के स्रोत 
      सूख जाएं
      शेष हो सिर्फ रेत
और उस पर चलते
पांव में छाले पडते हों

जब सम्बन्धों के कुएं
कटुता की मिटटी
      फेंकते हों
मन प्यासा रह जाए

जब बीते कल की
गीली लकडी सुलगाने पर
उससे उठता धुआं
मन की आंखों में
       चुभता हो
आंसू छलक पडते हों

जब जीवन के कमरे में
खुद को अकेला पाओ
तडप उठो
किसी के संग को

तब तुम्हें
मेरी आवश्यकता होगी

तुम बुलाना
मैं आऊंगा   
          -बृजेश नीरज

Published in- 
Nirjhar Times
Ujesh Times- January 2013
Rachanakar - http://www.rachanakar.org/2013/01/blog-post_8003.html
Nayi Purani Halchal -  http://nayi-purani-halchal.blogspot.in 
Jan Madhyam Hindi Dainik, Lucknow - 19/01/2013

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