Monday, 5 November 2012

तुम्हारा स्पर्श






दिन भर की जद्दोजहद के बाद
तुम्हारा स्पर्श
मिटा देता है सारी थकान;
तुम्हारे आगोश में
भूल जाता हूं
सारे कष्ट;

लेकिन
रात की इस शीतलता में भी
चुभती है एक बात कि
शेष है
कल की रोटी का जुगाड़।
-        बृजेश नीरज

Published in-
Ujesha Times - January 2013


2 comments:

  1. ख़्वाबों की नरमी में भी हकीकत की सख्ती का एहसास हो ही जाता है...
    बहुत सुन्दर.
    अनु

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