ओठों पर एक अदद मुस्कान चाहिए
हमें भी जीने का अधिकार चाहिए।
फुटपाथ पर क्यूं गुजरे जिंदगी अपनी
कोठियों में रहने का अरमान चाहिए।
रोटियों के सहारे पेट भरता नहीं
पिज़्जा और फ्रैंकी का स्वाद चाहिए।
सिक्कों की खनक चुभने लगी है
तिजोरी में नोटों के अंबार चाहिए।
अब ने दबेगी ये आवाज हमारी
हमें समानता का अधिकार चाहिए।
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बृजेश नीरज
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