Thursday, 27 September 2012

तलाश



मौन अटक सा गया
अधर और दिमाग के बीच

कुछ सोचता
कुछ बोलता

धीरे धीरे हो गया
हृदय स्पंदनहीन

आंखें देखती हैं
अक्षर कुछ बोलते हैं

अर्थ खो रहे हैं शब्द

इस कौंधते अंधकार में
ढूंढनी ही होगी
प्रकाश की किरण

           -बृजेश नीरज
Published in-
Nirjhar Times


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