गम तो दिए हैं जिंदगी ने लेकिन
उम्मीद
है कि दीदारे-यार होगा
बहाने
बहुत हैं जीने के लेकिन
जीता हूँ कि विसाले-यार होगा
होती है जब हवाओं में जुंबिश
लगता है तू आस-पास होगा
रात की तन्हाइयाँ डराती नहीं
किसी सुबह तू मेरे साथ होगा
घोंघा भी चलता है तो रेत में, धूल में उसके चलने का निशान बनता है फिर मैं तो एक मनुष्य हूं। कुमार अंबुज
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