घोंघा भी चलता है तो रेत में, धूल में उसके चलने का निशान बनता है फिर मैं तो एक मनुष्य हूं। कुमार अंबुज
Oh..... Touchy Poem
Thanks!
उस हाथी को पता है इंसान के शौंक दूसरों के जिस्म से हो के पूरे होते हैं ...
वाह! गागर मे सागर।respected sir alka ws praising lot ur this poem seeing on facebook,bt then i hvn't seen it.really she is right.
Aaj kl to logo ko bhi sjawat ki tarah sath me rakha jata h:)nice poem!
आप चर्चा में तो थे आज आपकी उपस्थिति से मन प्रसन्न हुआ।
marmsparshi prastuti
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ब्लागर
Oh..... Touchy Poem
ReplyDeleteThanks!
Deleteउस हाथी को पता है इंसान के शौंक दूसरों के जिस्म से हो के पूरे होते हैं ...
ReplyDeleteवाह! गागर मे सागर।
ReplyDeleterespected sir alka ws praising lot ur this poem seeing on facebook,bt then i hvn't seen it.really she is right.
Aaj kl to logo ko bhi sjawat ki tarah sath me rakha jata h:)
ReplyDeletenice poem!
आप चर्चा में तो थे आज आपकी उपस्थिति से मन प्रसन्न हुआ।
Deletemarmsparshi prastuti
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