Monday, 15 April 2013

मेरे साथ सुर मिलाओगे


तुम्हें मेरी बात समझ नहीं आती
या तुम सुनना ही नहीं चाहते?

शायद पसंद नहीं तुम्हें
कोई बात करे
फुटपाथ और खेत की
चीथड़ों और भूख की
आसमान और रात की।

तुम्हें भाता है
रस में भीगी
गीली, चिकनी बातें।

दरकिनार करने पर लगे हो
मुझे
सोचते हो कि
धकेल दोगे हाशिए पर तो
मैं शुरू कर दूंगा
तुम्हारी भाषा बोलना।

तुम भ्रम में हो
मेरी भाषा न बदलेगी
तुम्हारी कोशिशें सफल न होंगी
ये सारे पशु पक्षी
जानवर, कीड़े, पौधे
सूरज, चांद, हवा
मेरे साथ हैं
और धीरे धीरे
सारी कायनात मेरा गीत गायेगी
और आखिर में
हो जाओगे अलग थलग
अपनी ढपली पीटते तो
तुम भी मेरे साथ सुर मिलाओगे।
                 - बृजेश नीरज

19 comments:

  1. आज अधिकांश लोग चिकनी चुपड़ी चापलूसी सुनना पसंद करते है,बेहतरीन प्रस्तुति.

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  2. मेरे साथ है साडी कायनात मेरे गीत गाएगी
    बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
    सुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !

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    1. आपका आभार! आपकी हौसला अफज़ाई से लिखने का साहस बढ़ा!

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  3. सच कहा है ... जो आज का गीत नहीं गाना चाहता पीछे रहने वाला है ... आज का सच समझना जरूरी है ...
    प्रभावी रचना ...

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    1. आपको रचना पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ।

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  4. गहन अनुभूति
    सुंदर रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

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    1. आपका आभार! आपको रचना पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ।

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  5. ठोस कथ्यों से सजी सुन्दर अभिव्यक्ति।
    सादर बधाई आपको।

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    1. वंदना जी आपका आभार!

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  6. वाह बहुत सुन्दर रचना ब्रिजेश जी | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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    1. आपका आभार तुषार जी!

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  7. आप यहां आए इसके लिए आभार!

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