तुम्हें
मेरी बात समझ नहीं आती
या तुम
सुनना ही नहीं चाहते?
शायद पसंद
नहीं तुम्हें
कोई बात
करे
फुटपाथ और
खेत की
चीथड़ों और
भूख की
आसमान और
रात की।
तुम्हें
भाता है
रस में
भीगी
गीली,
चिकनी बातें।
दरकिनार
करने पर लगे हो
मुझे
सोचते हो
कि
धकेल दोगे
हाशिए पर तो
मैं शुरू
कर दूंगा
तुम्हारी
भाषा बोलना।
तुम भ्रम
में हो
मेरी भाषा
न बदलेगी
तुम्हारी
कोशिशें सफल न होंगी
ये सारे
पशु पक्षी
जानवर,
कीड़े, पौधे
सूरज,
चांद, हवा
मेरे साथ
हैं
और धीरे
धीरे
सारी
कायनात मेरा गीत गायेगी
और आखिर
में
हो जाओगे
अलग थलग
अपनी ढपली पीटते
तो
तुम भी
मेरे साथ सुर मिलाओगे।
- बृजेश नीरज
आज अधिकांश लोग चिकनी चुपड़ी चापलूसी सुनना पसंद करते है,बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपका आभार!
Deleteमेरे साथ है साडी कायनात मेरे गीत गाएगी
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
सुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !
आपका आभार! आपकी हौसला अफज़ाई से लिखने का साहस बढ़ा!
Deleteसच कहा है ... जो आज का गीत नहीं गाना चाहता पीछे रहने वाला है ... आज का सच समझना जरूरी है ...
ReplyDeleteप्रभावी रचना ...
आपको रचना पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ।
DeleteSo nice.
ReplyDeleteThanks!
Delete
ReplyDeleteगहन अनुभूति
सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
आपका आभार! आपको रचना पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ।
Deleteअच्छी रचना
ReplyDeleteआपका आभार!
Deleteठोस कथ्यों से सजी सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर बधाई आपको।
वंदना जी आपका आभार!
Deleteवाह बहुत सुन्दर रचना ब्रिजेश जी | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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आपका आभार तुषार जी!
Deleteआप यहां आए इसके लिए आभार!
ReplyDeletesidhi sacchi bat .....
ReplyDeleteThanks!
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