Thursday, 18 April 2013

घनाक्षरी/ माता स्तुति


तोहरे दुआरे मात, खड़े दोउ कर जोरे
अब तो आप आइके, दरस दिखाइए
तोहरी शरण आया, तेरा ये कपूत मात
सेवक को मां अपनी, शरण लगाइए

इक आस तोरी मात, दूजा को सहाई मोर
अइसे न आप मोरी, सुधि बिसराइए
बिपत जो आन पड़ी तुझको पुकारूं मातु
आप ही अब आइके, पार मा लगाइए

न ही मांगूं सोना चांदी, न ही धन दौलत मां
अपने चरण मोहे, आप मां बिठाइए
इतनी अरज तोसे, क्षमा अपराध कर
अपने हृदय मे ही, मोको मां बसाइए
                     - बृजेश नीरज

2 comments:

  1. Replies
    1. आपका आभार! आपकी उपस्थिति से मैं धन्य हो गया।

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