Wednesday, 6 March 2013

दोहे


देख धनी बलवान के, चिकने चिकने पात।
दुखिया दीन गरीब के, खुरदुर चिटके पात।।

दुखिया सब संसार है, सुख ढूंढन को जाय।
दूजों का जो दुख हरे, सुख चल के खुद आय।।

अपना कष्ट बिसारि के, औरों की सुधि लेय।
नहीं रीति ऐसी रही, अपनी अपनी खेय।।

अपनी अपनी सब कहें, अपनी अपनी सोच।
इक दूजे की नहिं सुनें, लड़ा रहे हैं चोच।।

मन की इच्छा जानकर, चला शहर की ओर।
जाकर देखा जो वहाँ, मचा हुआ है शोर।।
                        - बृजेश नीरज

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (07-03-2013) के “कम्प्यूटर आज बीमार हो गया” (चर्चा मंच-1176) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

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  2. सुन्दर सोच ,बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
    आप भी मेरे ब्लॉग का अनुशरण करें ,ख़ुशी होगी
    latest postअहम् का गुलाम (भाग एक )
    latest post होली

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  3. सच है दूसरों के दुःख हरने से सच्चा सुख नहीं ...
    लाजवाब ... सभी दोहे कमाल ...

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  4. sabhi dohe sarthak arth prastut kar rahe hai...

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