Sunday, 3 March 2013

आराम है



जुल्फ में तेरी कटी हर शाम है
अब सिवा तेरे कहां आराम है

जाम तो खाली सभी मैंने किये
तिश्नगी नाहक हुई बदनाम है

जख्म जो तूने छुआ मेरा, लगा
अब यहां आराम ही आराम है

रोशनी तो थी यहां होनी मगर
गुम अंधेरों में सिसकती शाम है

रात के सोए अभी जागे नहीं
वो जो लाए सुब्ह का पैगाम है
                 - बृजेश नीरज

6 comments:

  1. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल

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    1. आपका आभार! आपकी हौसला अफज़ाई से लिखने का साहस बढ़ा!

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    धन्यवाद
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  3. बहुत खूब सुन्दर लाजबाब अभिव्यक्ति।।।।।।

    मेरी नई रचना
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

    ये कैसी मोहब्बत है

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  4. जाम तो खाली सभी ने किये ...
    बहुत ही लाजवाब लगा ये शेर ... प्यास पे इलज़ाम क्यों देते हैं सब ... सच कहा ...
    पूरी गज़ल उम्दा है ...

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