घोंघा भी चलता है तो रेत में, धूल में उसके चलने का निशान बनता है फिर मैं तो एक मनुष्य हूं। कुमार अंबुज
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ब्लागर
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteआपका आभार! आपकी हौसला अफज़ाई से लिखने का साहस बढ़ा!
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ReplyDeleteधन्यवाद
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बहुत खूब सुन्दर लाजबाब अभिव्यक्ति।।।।।।
ReplyDeleteमेरी नई रचना
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
जाम तो खाली सभी ने किये ...
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब लगा ये शेर ... प्यास पे इलज़ाम क्यों देते हैं सब ... सच कहा ...
पूरी गज़ल उम्दा है ...
आपका आभार!
Deleteसादर!