ये बहारें ये फिजा
सौगात तेरी आ
गयी है
चांद ने घूंघट
उतारा बात तेरी
आ गयी है
याद आई, तू
न आया, क्या
गिला करना किसी
से
रात भर आंसू
बहाएं बात तेरी
आ गयी है
इन घटाओं ने
न जाने कौन
सा जादू किया
जो
शाम ढलती ही
रही इस्बात तेरी आ
गयी है
अब सहारा ढूंढते हैं तू नहीं
जो साथ मेरे
तू कहीं होता
यहीं क्यूं बात
तेरी आ गयी
है
रात की तन्हाइयां भी सालती हैं
अब मुझे यूं
बात कुछ होती
नहीं पर बात
तेरी आ गयी
है
- बृजेश नीरज
Nice rhythmic poem!
ReplyDeleteWell done!
Thanks!
Deleteबहुत खूब ... लाजवाब शेर हैं उनकी याद में .,..
ReplyDeleteआपका आभार!
ReplyDeletebahut achhi panktiyaan
ReplyDeleteवाह..लाजवाब..
ReplyDeleteआपको रचना पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ।
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