कुम्हार
रूप दे दो
इधर उधर बिखरी
हुई है
ये मिट्टी
रौंद रहे हैं
लोग
रंग काला पड़ने
लगा
कुछ कीड़े भी
पनपने लगे
इसे कोई रूप
दे दो
कुम्हार
कि फिर निखर
आए
यह एक नए रूप
में।
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तारे
चाहता हूं मैं
भी
तोड़ लाना आसमान
के तारे
तुम्हारे लिए
लेकिन क्या करूं
मेरा कद है
बौना
हाथ छोटे।
- बृजेश नीरज
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