घोंघा भी चलता है तो रेत में, धूल में उसके चलने का निशान बनता है फिर मैं तो एक मनुष्य हूं। कुमार अंबुज
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ब्लागर
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद!
Deleteबहुत उम्दा प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteआज के परिवेश में जीवन समस्याओं से जलरहा है।वास्तव में छांव की आवश्यकता हम सभी को है।
ReplyDeleteसटीक एवं सुन्दर अभिव्यक्ति!
बाल धूप मे सफ़ेद होने..............................वाह !
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