घोंघा भी चलता है तो रेत में, धूल में उसके चलने का निशान बनता है फिर मैं तो एक मनुष्य हूं। कुमार अंबुज
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ब्लागर
वाह लाजवाब | आभार
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
Thanks!
Delete'बात हो ऐसी कि इसकी कहानी कह लें'
ReplyDeleteइसमे 'इसकी' आपने किसके लिए कहा है?
अच्छी रचना है!
सादर
दोस्त, दोस्ती के लिए
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