Saturday, 23 February 2013

बेचारा


जाने अनजाने लोगों के बीच
हंसता हंसाता हूं
मेरे संग सब
मुस्कराते हैं
खिलखिलाते हैं

लेकिन
जब लगती है चोट कोई
बस देखते रहते हैं
सूनी आंखों से
कोई रोता नहीं मेरे साथ
मुंह से आवाज आती है
च...च....च....च......बेचारा
                - बृजेश नीरज

No comments:

Post a Comment

कृपया ध्यान दें

इस ब्लाग पर प्रकाशित किसी भी रचना का रचनाकार/ ब्लागर की अनुमति के बिना पुनः प्रकाशन, नकल करना अथवा किसी भी अन्य प्रकार का दुरूपयोग प्रतिबंधित है।

ब्लागर