Tuesday 1 October 2013

तरही ग़ज़ल


तके है राह ये किसकी नज़र हर शाम से पहले
बचाने लाज आया कौन आखिर श्याम से पहले

सितम हर एक सह लेंगे मगर तुम याद ये रखना
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले

बुझाने प्यास को अपनी परिंदा इक भटकता है
कुआँ औ ताल सूखे हैं यहाँ पर घाम से पहले

नज़र में छवि तुम्हारी है तुम्हारा ख्याल हरदम है
तुम्हारा ज़िक्र होता है मेरे हर जाम से पहले

किसे अपना कहें किसको पराया ही समझ लें हम
नहीं होती असल पहचान अब अंजाम से पहले

              - बृजेश नीरज 

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