करें हम
मान अब इतना
सजा लें
माथ पर बिन्दी।
बहे फिर
लहर कुछ ऐसी
बढ़े इस
विश्व
में हिन्दी।।
गंग सी
पुण्य
यह धारा
यमुन सा
रंग हर गहरा
सुबह की
सुखद बेला सी
धरे है
रूप ये हिन्दी।।
मधुरता
शब्द,
आखर में
सरसता
भाव, भाषण में
रसों की
धार छलके तो
करे मन
तृप्त
यह हिन्दी।।
तोड़कर
बॅंध दासता के
सभी भ्रम
जाल भाषा के
बसा लें
प्रेम
अब इसका
प्रथम
हो
देश में हिन्दी।।
-
बृजेश नीरज
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