जिस जगह पर
छांव हो
प्रकृति रूनझुन
खग
की गुनगुन
धरती हरित भाव
हो
खिल
उठें पुष्प
धर
स्वप्न रूप
ऐसी जगह पर
चलो
हवा से प्राण
झंकृत
झरना
अविरल
नदिया
कल कल
बारिशों में अलंकृत
छाए
बदरी
गाएं
कजरी
झूमने गाने चलो
हम जहां हैं
वहां बस
भीड़
है अजब
शोर
है गजब
ईंट की दीवार
बस
उखड़ती
सांस
टूटती
आस
उकता गया मन,
चलो
थक गए हैं
पांव अब
कोई
ठौर न
कोई जोर
न
क्या बचा है
साथ अब
लोभ की
रेह
अहं की मेह
रेत के पर्वत
चढ़ो
और दुनिया अब चलो।
- बृजेश नीरज
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