भारत के
राजनैतिक प्रपंच में चुनाव की आहट ढेर सारे शगूफों और पाखण्डों को जन्म दे देती
है। जैसे जैसे लोकसमा चुनाव करीब आते जाएंगे भारतीय लोकतंत्र के छद्म रखवाले झक
सफेद चादर ओढ़े नित नए नए ढोंग गढ़ते नजर आएंगे। पिछले लगभग एक साल से जो कुछ
घटनाक्रम राजनैतिक परिदृश्य पर चल रहा है वह बस इस नाटक की बानगी भर है। लोकपाल से
लेकर घोटालों तक की आंधियां झेल चुके भारतीय लोकतंत्र के मूक दर्शक के लिए कुछ भी
नया नहीं है। वह यह तमाशे लगातार देखता ही रहा है और अपने छले जाने का अहसास लिए
बस इस थाती को जिंदा रखने भर के लिए चुप है।
इस देश की
आम जनता जानती है कि यह लोकतंत्र सिर्फ नाम का लोकतंत्र है। वास्तविकता में इस
तंत्र का लोक कब का हाशिए पर पड़ा आहें भर रहा है और वंशवाद और बाजारवाद की
संस्कृति अब फल फूलकर अमरबेल की तरह इस देश की व्यवस्था के वृक्ष को चट कर जाने को
आतुर है। जिस तरह से बाजारवाद का मिथक फैलाकर घरेलू उद्योगों और कलाओं को ध्वस्त
किया गया, उसी तरह अब वंशवाद की बेल इस तंत्र को पूरी तरह अपनी जकड़न में लेकर इसका
गला मरोड़ने को आतुर है।
राहुल को
युवराज स्वीकार कर चुके लोकतंत्र के नकाबपोश रक्षकों को आजकल मोदी का भय सता रहा
है और दंगों की कालिख से घिरे नरेन्द्र मोदी अपनी सफलताओं की सुंदर पैकेजिंग के
साथ किसी डीठ की तरह मुस्कुराते खड़े हैं। बिहार में अपनी नाकामियों से दिग्भ्रमित
नितीश कुमार का चिल्ला चिल्लाकर गला दर्द करने लगा। उनकी तरह तमाम नेता अपनी बेचारगी
में मोदी के खौफ से ग्रस्त हैं और समझ नहीं पा रहे कि इस बाढ़ को कैसे रोका जाए।
उन्हें एक डर सता रहा है कि कहीं ये बाढ़ आगे चलकर सुरसा की तरह उन्हें ही निगल न
जाए।
भारतीय
जनता पार्टी में भी विरोध मुखर है। सबके अपने अपने निहितार्थ हैं। उससे करना क्या?
राजनीति में स्वार्थ और लोभ की थाती ही चलती है। उसके चलते किसी का भी विरोध जायज
है। सबसे मजेदार बात यह कि भारतीय लोकतंत्र के दंगल में कसरत कर रही किसी भी
पार्टी में अंदरूनी लोकतंत्र मौजूद नहीं। बस कण्डे थोपकर ही काम चल रहा है सभी
चूल्हों का।
अब
कांग्रेस को ही लें। यहां तो जीवन ही एक वंश की सांसों पर चल रहा है। कितनी रूचिकर
स्थिति है कि एक की सांस पर कितने जीवित हैं। वंशवाद और दरबारवाद की जो विष बेल
कांग्रेस ने बोई है वह अब इस देश के साथ खुद कांग्रेस को निगल जाने को तैयार है।
किसी गरीब के घर रात बिताने और हाथ मिलाने की राजनीति करने वाले राहुल मुस्कुराहट
का चोंगा पहने एक रेसकोर्स के दर्शक भर लगते हैं। अब घोड़े की नकेल उनके हाथ में दे
दी गयी है। देखना रूचिकर होगा कि वे कितना उछलते हैं और कितनी बार गिरते हैं।
ऐसे में
2014 की धींगा कुश्ती कम मजेदार नहीं होने वाली। मोदी और राहुल के द्वंद की खींची
जा रही लकीरें क्या रूप लेती हैं यह तो देखने वाली बात होगी लेकिन इतना तय है कि
इन सबसे भारतीय लोकतंत्र और इस देश के आम जन का कोई भला नहीं होने वाला। महंगाई की
मार और गैस, डीजल के दामों के नीचे दबा कराह रहा आम जन कहीं दम न तोड़ दे, ईश्वर से
यही प्रार्थना करनी होगी। वरना उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं।
- बृजेश नीरज
No comments:
Post a Comment