छूटल आपन ई
देस रे
काहे का
बिटिया भइल परायी
काहे दीजो
परदेस रे
हम रहिन
बाबुल बाग की चिरिया
जो फुदक
फुदक उड़ि जाय रे
इत्ता नेहा
रहिला रे माई
कइसन दीहुल
बिसराय रे
माई क
अंचरा भइल पराया
मोहे मिला
अब बिदेस रे
छूटत बा ई
निमिया की डारी
झूला रहिल
अब त सून हो
सब संगी
साथी भइल पराए
अंखिया भइल
अब सून हो
कासे कहब
अब पीर रे माई
के कढ़िहै
मोरा केस रे
भइया के
माथे ताज सजा रे
बिटिया त
पराई जात बा
ई कवन नियम
रचा रे बिधाता
नइहर ई
छूटत जात बा
अब त न
जाने कौन जनम माई
देखब आपन ई
देस रे
- बृजेश नीरज
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