Thursday, 30 May 2013

ग़ज़ल/ कौन रास्ता लाया


2122, 1212, 22
इस जगह कौन रास्ता लाया
कुछ अजब दिल से साबका लाया

बेख़बर ढूंढते किरन कोई
रात की, दिन ये इंतिहा लाया

गांव की हो गयी गली सूनी
शहर की भीड़ जब बुला लाया

लापता मंजिलें लगीं होने
कौन सा ख्वाब मैं उठा लाया

अब चलूं रूक गया बहुत दिन मैं
‘फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया’

                - बृजेश नीरज

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