प्रेम की पींगें
भरना
बहुत भाता है
सुहाता है
प्रेमिका का
आहवाहन
प्रेम गीत में
मग्न
झूमना
सरस है
जुल्फों की
ओट
खोज लेना
घुमड़ते बादलों
के बीच
लबों में
गुलाब की पंखुड़ी
के रस सा
एहसास
लेकिन स्वप्न
टूटेंगे
जब एक रोज
जेब में पड़े
चंद सिक्के
फटे अस्तर से
कहीं गिर जाएं
भूखे गुजारनी
पड़े रात
दर दर भटकने
के बाद भी
एक छत न नसीब
हो
दिन भर खटने
के बाद
एक जून की रोटी
जुह न पाए
उस समय अगर
कोई आंचल से
पोंछ दे
माथे का पसीना
तो समझना प्रेम
है
लबों में एक
अलग
रस का स्वाद
मिलेगा
स्पर्श में
होगी
स्वर्ग पा लेने
की अनुभूति।
- बृजेश नीरज
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