Friday, 3 May 2013

प्रेम


प्रेम की पींगें भरना
बहुत भाता है

सुहाता है
प्रेमिका का आहवाहन
प्रेम गीत में मग्न
झूमना

सरस है
जुल्फों की ओट
खोज लेना
घुमड़ते बादलों के बीच
लबों में
गुलाब की पंखुड़ी के रस सा
एहसास

लेकिन स्वप्न टूटेंगे
जब एक रोज
जेब में पड़े चंद सिक्के
फटे अस्तर से कहीं गिर जाएं
भूखे गुजारनी पड़े रात

दर दर भटकने के बाद भी
एक छत न नसीब हो
दिन भर खटने के बाद
एक जून की रोटी
जुह न पाए

उस समय अगर
कोई आंचल से पोंछ दे
माथे का पसीना
तो समझना प्रेम है
लबों में एक अलग
रस का स्वाद मिलेगा
स्पर्श में होगी
स्वर्ग पा लेने की अनुभूति।
               - बृजेश नीरज

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