14
पंक्तियां, 24 मात्रायें
तीन बंद (Stanza)
पहले व
दूसरे बंद में 4 पंक्तियां
पहली और चौथी पंक्ति
तुकान्त
दूसरी व
तीसरी पंक्ति तुकान्त
तीसरे बंद
में 6 पंक्तियां
पहली और चौथी तुकान्त
दूसरी व
तीसरी तुकान्त
पांचवीं व
छठी समान्त
उठते बादल स्याह
गगन में हैं बगुले से
छाए मन पर भाव
कुम्हलाए छितरे से
दुख का सागर
लहराता न तनिक भी छिछला
चिड़िया चहकीं
पर गौरैया बहकी बहकी
इस डाली से
बस उस डाली फिरती रहती
खिलीं हैं कलियां
भी और कोंपल मुस्काती
फिर भी न हरियाई,
बगिया अब भी न महकी
हर तरफ हैं
किरनें चमकी और छितरी सी
न जाने क्यूं
फिर भी ये अंधियारा चुभता
कोई शीशा टूट
गया रह रहकर चुभता
इधर समेटूं
पाखें लहुलुहान बिखरी सी
बस प्रतीक्षा
शेष रही, काश! तुम आ जाओ
यहां क्षितिज
पर स्वर्णिम आभा सी छा जाओ
- बृजेश नीरज
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