Friday, 24 May 2013

सॉनेट/ तुम आ जाओ


14 पंक्तियां, 24 मात्रायें
तीन बंद (Stanza)
पहले व दूसरे बंद में 4 पंक्तियां
पहली और चौथी पंक्ति तुकान्त
दूसरी व तीसरी पंक्ति तुकान्त

तीसरे बंद में 6 पंक्तियां
पहली और चौथी तुकान्त
दूसरी व तीसरी तुकान्त
पांचवीं व छठी समान्त

सब तो है वैसा ही, आखिर क्या है बदला
उठते बादल स्याह गगन में हैं बगुले से
छाए मन पर भाव कुम्हलाए छितरे से
दुख का सागर लहराता न तनिक भी छिछला

चिड़िया चहकीं पर गौरैया बहकी बहकी
इस डाली से बस उस डाली फिरती रहती
खिलीं हैं कलियां भी और कोंपल मुस्काती
फिर भी न हरियाई, बगिया अब भी न महकी

हर तरफ हैं किरनें चमकी और छितरी सी
न जाने क्यूं फिर भी ये अंधियारा चुभता
कोई शीशा टूट गया रह रहकर चुभता
इधर समेटूं पाखें लहुलुहान बिखरी सी
बस प्रतीक्षा शेष रही, काश! तुम आ जाओ
यहां क्षितिज पर स्वर्णिम आभा सी छा जाओ
                           - बृजेश नीरज

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