हर सांस यहां
अटकी भटकी
फिर भी प्यारी
यह मधुशाला
कितने जीवन
बरबाद हुए
आबाद रही पर
मधुशाला
साकी के नयनों
से छलकी
चमकी दमकी सी
मधुशाला
पत्नी का वैभव
चूर हुआ
जब रंग चढ़ी
ये मधुशाला
बिसरी बच्चों
की भूख प्यास
बस याद रही
यह मधुशाला
मां बाप लगे
दुश्मन जैसे
अहसास बनी यह
मधुशाला
रिश्ते नाते
सब छूट गए
जब साथ चली
ये मधुशाला
दुनिया से भी
वैराग हुआ
मन प्राण बसी
यह मधुशाला
घर बार गया
धन दौलत भी
सम्मान ले गयी
मधुशाला
कुछ ऐसा इसका
नशा चढ़ा
यह देह पी गयी
मघुशाला
- बृजेश नीरज
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