अभी तक
संजोए हुए था
अपना एक आकाश
और एक धरती
लेकिन न जाने
कहां से तुम
आ गए
मेरे जीवन में
तोड़ दिए
मिथक जीवन के
वे झरोखे
बंद हो गए
जहां से देखता
था
आकाश
टूट गए वो
पैमाने
जिनसे नापता था
धरती को
तुम्हारे प्रेम में
विस्तार पा गया
मेरा आकाश
तुम्हारे स्पर्श ने
दे दिया असीम
व्यास मेरी धरा
को।
तुम्हारा आना
एक इत्तेफाक हो सकता
है
लेकिन तुम्हारा होना
अब मेरी आवश्यकता।
- बृजेश नीरज
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