Tuesday, 9 April 2013

गज़ल/ बिल्ली परेशां रही होगी


भूख से बिल्ली परेशां जो रही होगी
रोटियां बासी तभी तो खा गयी होगी

हौसले परिंदों के भी तो पस्त होते हैं
लाख उड़ने की कला उनमें रही होगी

कोयलों की कूक गायब हो गयी है अब
साथ ही में उन दरख्तों के खो गयी होगी

आपका पहलू जरा सा जो हवा में था
ये वही खुशबू यहां तक रही होगी

ये गुंचे भी सरनिगूं होने लगे हैं जो
वो सबा भी बात तेरी कर रही होगी
                   - बृजेश नीरज

6 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

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  2. आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है....ब्रिजेश सिंह जी

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  3. भई वाह ... लाजवाब गज़ल है ... हर शेर दिलचस्प ...
    आपका पहलू ... ये शेर बहुत ही उम्दा लगा ... प्रेम की खुशबू लिए है ये ...

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  4. मंगलवार 23/04/2012को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....

    आपके सुझावों का स्वागत है ....
    धन्यवाद .... !!

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    1. आदरणीया आपका बहुत आभार! आपकी उपस्थिति ने आज मेरा मान बढ़ा दिया। मैं आपका कृतज्ञ हूं।

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