Tuesday, 23 April 2013

अवधी घनाक्षरी


ओपन बुक्स ऑनलाइन, चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक-२५ में मेरी रचना

(चित्र ओबीओ/गूगल से साभार)

सिखावा रे हमहूं का, अइसा जतन कछु
हम होइ जाई अब, पास ई भरती मा।

मोट ताज लोग सब, आय तो इहां बाटेन
कइसे होइ पइबै, पास ई भरती मा।

जाने किता चैंाड़ चाहे, सीना पुलिस खातिर
थक गय फुलाय के, छाती ई भरती मा।

तनि गय शरीर ई, तीर कमान जइसे
तबहूं न ई भइले, खुश ई भरती मा।

राम जाने कौन गति, होइहै हमार इहां
धुपवा झुराय डारे, तन ई भरती मा।

नाप जोख करै वाले, सब ई मोटान अहां
भूलि गयन आपन, दिन ई भरती मा।
                      - बृजेश नीरज

जतन = तरीका
इहां = यहां
बाटेन = हैं
पइबै = पाएंगे
किता = कितना
धुपवा = धूप ने
झुराय = सूखना
डारे = डाला

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