ओपन बुक्स ऑनलाइन,
चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक-२५ में मेरी रचना
सिखावा रे हमहूं
का, अइसा जतन कछु
हम होइ जाई
अब, पास ई भरती मा।
मोट ताज लोग
सब, आय तो इहां बाटेन
कइसे होइ पइबै,
पास ई भरती मा।
जाने किता चैंाड़
चाहे, सीना पुलिस खातिर
थक गय फुलाय
के, छाती ई भरती मा।
तनि गय शरीर
ई, तीर कमान जइसे
तबहूं न ई भइले,
खुश ई भरती मा।
राम जाने कौन
गति, होइहै हमार इहां
धुपवा झुराय
डारे, तन ई भरती मा।
नाप जोख करै
वाले, सब ई मोटान अहां
भूलि गयन आपन,
दिन ई भरती मा।
- बृजेश नीरज
जतन = तरीका
इहां = यहां
बाटेन = हैं
पइबै = पाएंगे
किता = कितना
धुपवा = धूप
ने
झुराय = सूखना
डारे = डाला
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