तुम अविराम हृदय में
गहरे पैठे जाते
हो
कैसे रोकूं तुमको
कि
जाने क्या कर
जाते हो
तुमसा दूजा कौन
जगत में
जिसका मैं विश्वास करूं
पर तुम हो
मेरे मन में
नित हलचल कर
जाते हो
सावन की बौछारों से
भींज गया ये
तन मन
प्रेम की अविरल
धारा में
संग बहा ले
जाते हो
प्रातः की रश्मि
जैसा
उज्ज्वल तेरा आह्वाहन
चल देता हूं
संग तुम्हारे
जहां जहां ले
जाते हो
- बृजेश नीरज
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपका आभार!
Deleteआपको भी होली की हार्दिक शुभकामनाएं!
गुरूदेव आपका आभार!
ReplyDeleteछायावादी कवियों की याद आ गई!
ReplyDeleteआपका आभार! आपकी उपस्थिति ने मेरा लेखन सार्थक कर दिया!
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