Tuesday, 26 March 2013

तुम एक धारा


तुम अविराम हृदय में
गहरे पैठे जाते हो
कैसे रोकूं तुमको कि
जाने क्या कर जाते हो

तुमसा दूजा कौन जगत में
जिसका मैं विश्वास करूं
पर तुम हो मेरे मन में
नित हलचल कर जाते हो

सावन की बौछारों से
भींज गया ये तन मन
प्रेम की अविरल धारा में
संग बहा ले जाते हो

प्रातः की रश्मि जैसा
उज्ज्वल तेरा आह्वाहन
चल देता हूं संग तुम्हारे
जहां जहां ले जाते हो
                 - बृजेश नीरज

5 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.

    होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. आपका आभार!
      आपको भी होली की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  2. गुरूदेव आपका आभार!

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  3. छायावादी कवियों की याद आ गई!

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    1. आपका आभार! आपकी उपस्थिति ने मेरा लेखन सार्थक कर दिया!

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