इक रोज़ उसने
मुझ को छत पर बुला के मारा
ख़ुद को छुपा
के उसने कंकड़ उठा के मारा
तूने कभी तो
मुझको जलवा दिखा के मारा
तेरा न जी भरा
तो पलकें गिरा के मारा
होली के दिन
न अपनी हरकत से बाज आए
सबने उसे गली
में दौड़ा लिटा के मारा
वो रोज तंग
करता लड़की को आते जाते
लड़की ने फिर
तो इक दिन थप्पड़ घुमा के मारा
मुझको तो ये
पता था ऐसा ही वो करेगा
इसको हंसा के
मारा उसको रूला के मारा
- बृजेश नीरज
ReplyDeleteबहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार !
ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है.
मौसम आज रंगों का , छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है
आपका आभार!
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!
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आपको रंगों के पावनपर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
गुरूदेव आपका आभार!
Deleteहोली रंगों के साथ ही (हुरियारों को) मारने का त्यौहार भी तो है-जिसे जैसै मौका लगे !
ReplyDeleteसच कहा आपने लेकिन इस मार में भी प्रेम छुपा होता है।
Deleteहोली की महिमा न्यारी
ReplyDeleteसब पर की है रंगदारी
खट्टे मीठे रिश्तों में
मारी रंग भरी पिचकारी
होली की शुभकामनायें
आपका आभार!
Deleteआपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं!
बढिया है बृजेश जी
ReplyDeleteआपका आभार!
Deleteआदरणीय बृजेश भाई वाह परम आनंद की प्राप्ति हुई यहाँ आकर, बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है मित्र हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteआपका आभार अनन्त भाई!
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