Thursday, 21 March 2013

बसंत


स्याह आसमान में
उजली किरन सा

गर्म दुपहरिया में
एक ठंडी बयार सा

टकटकी बांधे निगाहों को
प्रेमी के दीदार सा

लो आया बसंत
नवयौवन के प्यार सा।

फिर खिलेंगे
फूल सरसों
टेसू के वो
रंग चढेंगे
गाएंगे गीत मधुर
मौसम ये बहार का।

ज्यों कोंपल नई उगी
कोई कली नई खिली
एक नई उमंग जगी
बीता दिन मलमास सा।

जीवन में नवरंग भरे
प्रकृति नवचेतन भई
क्यों कुछ नए रंग भरें
ये मौसम नव श्रंगार का।
             - बृजेश नीरज






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