स्याह आसमान में
उजली किरन सा
गर्म दुपहरिया में
एक ठंडी बयार
सा
टकटकी बांधे निगाहों को
प्रेमी के दीदार
सा
लो आया बसंत
नवयौवन के प्यार
सा।
फिर खिलेंगे
फूल सरसों
टेसू के वो
रंग चढेंगे
गाएंगे गीत मधुर
मौसम ये बहार
का।
ज्यों कोंपल नई
उगी
कोई कली नई
खिली
एक नई उमंग
जगी
बीता दिन मलमास
सा।
जीवन में नवरंग
भरे
प्रकृति नवचेतन भई
क्यों न कुछ
नए रंग भरें
ये मौसम नव
श्रंगार का।
- बृजेश नीरज
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