Wednesday 20 March 2013

हिन्दी गज़ल-3


     मेरे सामने सबसे बड़ी समस्या यह रही कि गजल लिखना सीखा किससे जाए तो उसका वही रास्ता मैंने चुना जो कि पढ़ने और पढ़ाने के दौर में किया करता था। पुस्तकों और इंटरनेट पर उपलब्ध लेखों को पढ़कर  उनसे अपने नोट्स बनाने शुरू किए हैं। सीखने के इस दौर में नोट्स यहां इस अनुरोध के साथ प्रस्तुत कर रहा हूं कि जो सुधीजन इस क्षेत्र में जानकारी रखते हैं वे इसे पढ़ें और यदि कुछ छूट गया हो तो उसकी जानकारी दें तथा यदि कुछ त्रुटि हो तो उसे सुधारने का कष्ट करें।

गजल का विश्लेषण
     अगर शिल्प की दृष्टि से गजल के स्वरूप पर विचार करें तो गजल के प्रमुख तीन भाग होते हैं- 
पहला-  मतला
दूसरा-  मकता।
तीसरा-  मध्य भाग। यह भाग गजल का मुख्य कलेवर है जिसमें गजल के समस्त पद (शेर) शामिल रहते हैं। गजल में शेरों की संख्या की कोई पाबन्दी नहीं है। फिर भी प्रायः दस या बारह शेरों से अधिक की गजलें कम ही मिलती हैं। कम से कम तीन शेर की गजलें भी मिलती हैं।
गजल-  एक समान रदीफ (समांत) तथा भिन्न भिन्न कवाफी (काफिया का बहुवचन- तुकांत) से सुसज्जित एक ही वज्न (मात्रा क्रम) अथवा बह्’र (छंद) में लिखे गए अश’आर (शे’र का बहुवचन) समूह को गजल कहते हैं जिसमें शायर किसी चिंतन विचार अथवा भावना को प्रकट करता है।
शाइर या सुखनवर-  उर्दू काव्य लिखने वाला
शाईरी-  उर्दू काव्य लेखन
गजलगो-  गजल लिखने वाला
गजलगोई-  गजल लिखने की प्रक्रिया
शे’र-  रदीफ तथा काफिया से सुसज्जित एक ही वज्न (मात्रा क्रम) अर्थात बह्’र में लिखी गई दो पंक्तियाँ जिसमें किसी चिंतन विचार अथवा भावना को प्रकट किया गया हो। उदाहरण स्वरूप दो अशआर (शेर का बहुवचन) प्रस्तुत हैं -
फकीराना आये सदा कर चले
मियाँ खुश रहो हम दुआ कर चले।

वह क्या चीज है आह जिसके लिए
हर इक चीज से दिल उठा कर चले।
               - (मीर तकी मीर)
     ‘शेर’ शब्द अरबी का है जिसका अर्थ है ‘जुल्फ’ या बाल। अरबी के हसान बिन साबित का ख्याल है कि अच्छा शेर वह है कि जब पढा जाए तो लोग बोल उठें कि सच कहा है। अरबी के कवि नाशी कहते हैं कि शेर में तनव्वो मजामीन (विषय वैविध्य) के साथ-साथ इसकी तर्तीब व तंजीम (क्रम व व्यवस्था) में भी अनुपात होना चाहिये। फारसी शायरों ने भी शेर में सरल शब्दों के प्रयोग की बात कही है, क्योंकि इससे काव्य में प्रवाह, कोमलता तथा मिठास उत्पन्न हो जाती है और काव्य प्रभावी बन जाता है।
     वास्तव में उसको लेकर काफी उलझन होती है कि ये गजल वाला शेर है या कि जंगल वाला मगर ये उलझन केवल देवनागरी में ही है क्योंकि उर्दू में तो दोनों शेरों को लिखने और उनके उच्चारण में अंतर होता है। गजल वाले शेर को उर्दू में कुछ इस तरह से उच्चारित किया जाता है शे’र, इसलिये वहां फर्क होता है। वास्तव में उसे शे’र कहेंगे तो जंगल के शेर से अंतर खुद ही हो जाएगा। शे’र की दो लाइनें होती हैं। वास्तव में अगर शे’र को परिभाषित करना हो तो कुछ इस तरह से कर सकते हैं- दो पंक्तियों में कही गई पूरी की पूरी बात, जहां पर दोनों पंक्तियों का वज्न समान हो और दूसरी पंक्ति किसी पूर्व निर्धारित तुक के साथ समाप्त हो। वास्तव में कविता और गजल में फर्क ही ये है। कविता एक ही भाव को लेकर चलती है और पूरी कविता में उसका निर्वाहन होता है। गजल में हर शे’र अलग बात कहता है और इसीलिये उस बात को दो पंक्तियों में समाप्त होना जरूरी है। इन दोनो लाइनों को मिसरा कहा जाता है दो मिसरों से मिल कर एक शे’र बनता है। अब उदाहरण के लिये ये शे’र-
मत कहो आकाश में कोहरा घना है,
ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है
अश’आर-  शे’र का बहुवचन
फर्द-  एक शे’र।
     पुराने समय में फर्द विधा प्रचिलित थी जो गजल की उपविधा थी। जैसे आज कतअ का मुसम्मन रूप प्रचिलित है अर्थात अब कतअ ४ मिसरों में कही जाती है। पुरानी कतआत में २ से अधिक अशआर भी मिलते हैं। आज अगर शायर कहता है कि कतअ पढता हूँ तो श्रोता समझ जाते हैं कि शायर चार मिसरों की रचना पढ़ेगा। उसी प्रकार एक स्वतंत्र शेर को फर्द कहा जाता है। जब कोई शायर कहता है कि फर्द पढता हूँ तो श्रोता समझ जाते हैं कि अब शायर कुछ स्वतंत्र शेर पढ़ने वाला है। अशआर कहने से यह पता चलता है कि सभी शेर एक जमीन के हैं और फर्द से पता चलता है कि सभी शेर अलग अलग जमीन से हैं।
मिसरा-  शेर की प्रत्येक पंक्ति को मिसरा कहते हैं, इस प्रकार एक शेर में दो पंक्तियाँ अर्थात दो मिसरे होते हैं। जब हम शेर कहते हैं तो उसकी दो लाइनें होती हैं। पहली लाइन जो कि स्वतंत्र होती है और जिसमें कोई भी तुक मिलाने की बाध्यता नहीं होती है। उसके बाद आती है दूसरी लाइन जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण होती है क्योंकि इसमें ही प्रतिभा का प्रदर्शन होता है। इसमें तुक का मिलान किया जाता है। पूरी बात कहने के लिये दो लाइनें दी गईं हैं। पहली लाइन में आपनी बात को आधा कहना है। जैसे
'सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा'  
इसमें शाइर ने आधी बात कह दी है। अब इस को अगली पंक्ति में पूरी करना जरूरी है।
'इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा'। 
     गीत में अगर एक छंद में कोई बात पूरी न हो पाए तो अगले छंद में ले लेते हैं। लेकिन गजल में पूरी बात को कहने के लिये दो ही लाइनें हैं।
मिसरा-ए-उला- शेर की पहली पंक्ति को मिसरा-ए-उला कहते हैं। ‘उला’ का शब्दिक अर्थ है ‘पहला’।
उदाहरण-  
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
                 -- मिसरा-ए-उला
  इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
                 - दुष्यंत त्यागी
मिसरा-ए-सानी-  शेर की दूसरी पंक्ति को मिसरा-ए-सानी कहते हैं। ‘सानी’ का शब्दिक अर्थ है ‘दूसरा’।
उदाहरण-  
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
       इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए                       
              -- मिसरा ए सानी
                शेष अगली बार………..
             - बृजेश नीरज

2 comments:

  1. Replies
    1. स्वयं सीखने के प्रक्रिया में मैंने जो जानकारियां एकत्रित कीं उन्हें साझा कर रहा हूं कि यदि कुछ रह गया हो तो वो मेरी जानकारी में भी आ जाए।

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