21 मार्च विश्व
कविता दिवस पर ‘कविता’ की याद में!
कविता कराह रही
है
गली के नुक्कड़ पर पड़ी हुई
तेज रफ्तार जिंदगी
रौंदकर चली गयी
उसे
स्वार्थ और वासना
के वस्त्रों पर
प्रेम की ओढ़नी
ओढ़े
समाज तमाशबीन खड़ा है
कोई पुरसाहाल नहीं
मुक्तिबोध कहीं धूल
फांक रहे
त्रिलोचन रहे नहीं
निराला का तो
कंकाल भी नहीं
बचा
कौन दे सहारा
उसे
बैसाखियों पर कविता
चलती नहीं
तो क्या दम
तोड़ देगी
वहीं पड़े-पड़े?
-
बृजेश नीरज
वाह भाई वाह क्या विचारणीय चित्रण किया कविता का | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
तमाम कुकुरमुत्ते भले ही उग आये हों उसके के नाम से,पर कविता का अस्तित्व अभी विद्यमान है !
ReplyDeleteआपने मेरी रचना पर टिप्पणी की मेरा लिखना आज सार्थक हुआ!
Deleteकविता थी है ओर रहेगी
ReplyDeleteकविता को मिल जाएंगे कंधे
लार काल में ढोने के लिए
क्या हुआ जो नहीं होगी ऊंचाई पे
वैसे भी कौन रह सका है ऊंचाई पे
जब तक है प्राकृति जीवित
रहेगी कविता हमेशा ...
आदरणीय बहुत सुन्दर! आप जैसे प्रेमियों ने ही तो जिन्दा रख रखा है उसे! आभार!
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-03-2013) के चर्चा मंच 1193 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeleteआपका आभार अरूण जी!
Deleteआपका आभार!
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