कंचन काया
कामिनी, डोलत कटि ज्यों डोर।
मोहक अति
मन भावनी, भ्रमर सरिस चित चोर।।
नैनन में
कजरा भरे, चितवन चतुर चकोर।
इत उत खोजत
फिरत है, नटखट श्याम किशोर।।
काटे से तो
नहि कटी, पानी की ये धार।
इक छोटी सी
बात पर, बंट गया घर संसार।।
अब तो मन
बैरी भया, पिया मिलन की आस।
बासंती
मधुबन भया, बढ़ती जाए प्यास।।
टेसू,
सरसों सब खिले, आंगन में मलमास।
रंग सभी
फीके हुए, पिया नहीं जो पास।।
बागों में
कलियां खिलीं, पेड़ सभी हरियाय।
मैं पतझड़
की बेल सी, सूखत दिन दिन जाय।
इस होली के
रंग में, डूबा सब संसार।
तुम बिन सूनी
मैं हुई, सूना ये घर द्वार।।
- बृजेश नीरज
बधाई हो आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज के ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकशित की गई है | सूचनार्थ धन्यवाद |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहे,धन्यबाद.
ReplyDeleteआपका आभार!
Deletesahi bat piya ke bina kaisee holi?
ReplyDeleteआपको रचना पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ।
Deleteआपकी पोस्ट 21 - 03- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें ।
आपका आभार!
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ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत सुंदर ...मजा आ गया
आपको रचना पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ। आभार!
Deleteबेह्तरीन.
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 27/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका आभार!यशोदा बहन को लम्बे समय बाद मेरी कोई रचना पसन्द आई इसलिए विशेष आभार!
Deleteबहुत प्रभावी दोहे ...
ReplyDeleteसच को हूबहू कहते हुए ...
आपका आभार!
Deleteबहुत प्यारा लिखा है आपने.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद!
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