क्लेष मिट गए
हाथ मिलाकर
गले मिल
घोषणा हुई
दिल में
झांककर देखा नहीं
निवाले छीनने को
बढ़े हाथों ने
मुंह मीठा कराया
खाबदान फिर शुरू
हो गया
कसैलापन
स्वाद खराब कर
रहा है
गले काटने को
खिंची तलवारें
म्यान में रख
दी गयीं
फेंकी नहीं गयीं
अभी
मुंह से निकले
शब्द
हवा में तैरते
दूर निकल गए
प्रतिध्वनियां
मस्तिष्क में हैं
एक दूसरे को
नोचने से
शरीर पर आए
जख्मों पर
पपड़ियां पड़ गयी
हैं
उन्हें उखाड़ने से
फिर खून बहे
शायद
फिलहाल क्लेष मिट
गए।
-
बृजेश नीरज
नोटः- 'खाबदान' अवधी भाषा
का शब्द है
जिसका अर्थ होता
है दो खानदानों के बीच खाने-पीने का रिश्ता।
धन्यवाद!
ReplyDeleteबधाई आपको!
ReplyDeleteभारत-पाक सम्बन्ध के लिए बिल्कुल सटीक रचना.
सुन्दर!
बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteबहुत बढ़िया,,,,
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति....
अनु
धन्यवाद!
Deleteहर बार की तरह शानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteआपका आभार!
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