Monday, 4 February 2013

क्लेष मिट गए


क्लेष मिट गए
हाथ मिलाकर
गले मिल
घोषणा हुई

दिल में
झांककर देखा नहीं

निवाले छीनने को
बढ़े हाथों ने
मुंह मीठा कराया
खाबदान फिर शुरू हो गया

कसैलापन
स्वाद खराब कर रहा है

गले काटने को
खिंची तलवारें
म्यान में रख दी गयीं

फेंकी नहीं गयीं अभी

मुंह से निकले शब्द
हवा में तैरते
दूर निकल गए

प्रतिध्वनियां
मस्तिष्क में हैं

एक दूसरे को नोचने से
शरीर पर आए
जख्मों पर
पपड़ियां पड़ गयी हैं

उन्हें उखाड़ने से
फिर खून बहे शायद

फिलहाल क्लेष मिट गए।
-        बृजेश नीरज

नोटः- 'खाबदान' अवधी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है दो खानदानों के बीच खाने-पीने का रिश्ता।

7 comments:

  1. बधाई आपको!
    भारत-पाक सम्बन्ध के लिए बिल्कुल सटीक रचना.
    सुन्दर!

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    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद!

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  2. बहुत बढ़िया,,,,
    सार्थक प्रस्तुति....

    अनु

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  3. हर बार की तरह शानदार प्रस्तुति

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  4. आपका आभार!

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