जो जिंदगी धड़कनों
में गुजरी
शमा उसकी तस्वीर
ही तो है
याद से दिल
बहलता रहा
इक तमन्ना सताती
तो है
आसमां जो पड़
गया नीला
ये दर्द की
तासीर ही तो है
जंजीरे-दर उदास
सी रही
सबा कुछ गुनगुनाती
तो है
दिन यूं बदलता
रहा पैरहन
शाम उसका अंजाम
ही तो है
समंदर है अब
खामोश सा
दरिया में खलल
सी तो है
-
बृजेश
नीरज
जंजीरे-दर - कुण्डी
सबा - ठंडी
हवा
पैरहन - वस्त्र
सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteबेहतरीन नज़्म..
ReplyDeleteबहुत सुंदर नज़्म...... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया !!
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