Friday, 15 February 2013

पहचान गए तुम्हारी असलियत


कुछ लोग लगातार शोर मचा रहे हैं
किसी कक्षा के उद्दण्ड बच्चों की तरह
हाकिम परेशान हैं
किसी मास्टर की तरह

सुनते क्यों नहीं
ध्यान दो
क्या कहना चाहते हैं

लेमनचूस बांटी गयी यह सोचकर कि
ये जनता का ही तो हिस्सा हैं
इतने से खुश न होंगे तो
कुछ देर चुप तो रहेंगे
कुछ देर शांति रहेगी
निर्विघ्न अपनी आकांक्षाएं पूरी कर सकोगे
बात बनी नहीं तो
सजा देने पर उतर आए

लेकिन हर बार
बेंच पर खड़ा कर देने भर से
जेल में ठूंस देने से या
बाहर निकाल देने से
शोर हमेशा के लिए बंद तो नहीं होता

कल आएंगे
फिर शोर मचाएंगे
या जहां रहेंगे
वहीं चिल्लाएंगे

यह जान लो कि
ये चम्बल के डाकू नहीं
आतंकवादी भी नहीं
जो तुम्हारे डंडे या गोली से डर जाएंगे

किसी लेखक की कलम तोड़ देने से
चित्रकार को देश निकाला दे देने से
आवाज नहीं दबने वाली
निरंकुशता नहीं स्थापित होने वाली

ये शोर बार-बार उठेगा
तानाशाही को चुनौती देगा
जाहिर है इसे दबाना ही चाहोगे
निदान कर नहीं सकते
क्योंकि तब
तुम सत्ता के बाहर होगे
गद्दाफी की तरह
लेकिन सजा से ये दब न सकेगा

इतना समझ लो
ये संसद नहीं कि
मार्शल से बाहर फेंकवा दोगे इन्हें
ये तो खुद संसद के बाहर हैं
राजतंत्र से दूर

ध्यान दो
लोकतंत्र के नाटक के मूक दर्शक
अब शोर मचाने लगे हैं
कुछ कुछ समझ आने लगी है
इस नौटंकी के पात्रों की हकीकत

चोला बदल लेने से बात न बनेगी
लोग पहचान गए हैं तुम्हारी असलियत

अभी तो छिटपुट शोर है
एक दिन पूरा देश चीखेगा
तब पड़ेंगी इन दीवारों में दरारें

गनीमत है
अभी कोई गांधी नहीं पैदा हुआ
इस चिंगारी को हवा देने को

वो दिन भी आएगा
सुभाष, भगत, गांधी
लोहिया, जयप्रकाश
अनगिनत चेहरों का रूप धर
एक साथ उठ खड़े होंगे
और तब भागना पड़ेगा
इस गद्दी को छोड़कर।
               - बृजेश नीरज




2 comments:

  1. ब्रिजेश नीरज जी अभिनन्दन है आप का भ्रमर का दर्द और दर्पण और प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच पर ....आपका स्नेह पा ख़ुशी हुयी अपना स्नेह बनाये रखें शुभ कामनाएं आप के साहित्यिक सफ़र के लिए ...आप की रचनाएँ यों ही छपती रहें और समाज आलोकित होता रहे ..
    अच्छी चेतावनी बहके हुये लोगों के लिए ...सुन्दर रचना
    भ्रमर 5
    प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच
    http://bhramarkadardpratapgarhsahityamanch.blogspot.com

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    Replies
    1. आपने मुझे और मेरी रचना को समय दिया इसके लिए आभार! आपका आर्शीवाद बना रहे तो शायद यह कलम भी चलती रहे।
      सादर!

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