जिक्र उनका
हो गया मेरा दर्द फिर छलक गया
जख्म मेरे दिल
पर था अश्क बन कर बह गया
मेरी चाहतें
फना हुईं जुस्तजू दिल में रह गयी
हाथ की लकीरों
में वो नाम लिखने से रह गया
चेहरा अभी नजर
में है नाम उनका जुबां पर है
उस ख्वाब के
इंतजार में करवटें बदलता रह गया
शाम अब भी ढलती
है हवा में इक महक सी है
इन नज़ारों का
क्या करूं दयार मेरा उजड़ गया
न आरजू न उम्मीद
है बस जिस्म सांसें ले रहा
जब मुझसे वो
जुदा हुआ वक्त वहीं ठहर गया
- बृजेश नीरज
सुर लय ताल अच्छे सधे हैं. लगे रहिए.
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