Saturday, 16 February 2013

वक्त ठहर गया


जिक्र उनका हो गया मेरा दर्द फिर छलक गया
जख्म मेरे दिल पर था अश्क बन कर बह गया

मेरी चाहतें फना हुईं जुस्तजू दिल में रह गयी
हाथ की लकीरों में वो नाम लिखने से रह गया

चेहरा अभी नजर में है नाम उनका जुबां पर है
उस ख्वाब के इंतजार में करवटें बदलता रह गया

शाम अब भी ढलती है हवा में इक महक सी है
इन नज़ारों का क्या करूं दयार मेरा उजड़ गया

न आरजू न उम्मीद है बस जिस्म सांसें ले रहा
जब मुझसे वो जुदा हुआ वक्त वहीं ठहर गया
                        - बृजेश नीरज

1 comment:

  1. सुर लय ताल अच्छे सधे हैं. लगे रहिए.

    ReplyDelete

कृपया ध्यान दें

इस ब्लाग पर प्रकाशित किसी भी रचना का रचनाकार/ ब्लागर की अनुमति के बिना पुनः प्रकाशन, नकल करना अथवा किसी भी अन्य प्रकार का दुरूपयोग प्रतिबंधित है।

ब्लागर