Sunday, 10 February 2013

आओ खेलें खेल


आओ सब मिलकर खेलें एक अनोखा खेल
तुम भी लूटो हम भी लूटें जनतंत्र की रेल

जनतंत्र की रेल कि तमाशा बड़ा अनोखा
नेता संसद में नोच रहे एक दूजे का झोंटा

नोचे झोंटा जोर जोर से शोर मचायें
लूट लिया सब इसने कुछ बचा हाय

बचा मुझको हाय जनता की गलती
मिलता मौका मुझे तो जनता बचती

जनता बचती तो फिर शोर कौन मचाता
एवरेस्ट से सागर तक सब मेरा हो जाता

मेरा हो जाता देश हाय किचकिच
ऐसा खेलें खेल खतम हो रोज की मिचमिच
                                     - बृजेश नीरज

13 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-02-2013) के चर्चा मंच-११५२ (बदहाल लोकतन्त्रः जिम्मेदार कौन) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद!
      मैं कृतज्ञ हुआ आपका आर्शीवाद पाकर।
      सादर!

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  2. अच्छा है, मज़ा आया

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  3. फिलहाल संसद जल-मल की जेल-जेल खेल रही है.....

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    1. बिलकुल सही कहा आपने।

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद!

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  5. वाह!..अच्छा लगा पढ़कर ..

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  6. उम्दा सोच
    भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।

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