घोंघा भी चलता है तो रेत में, धूल में उसके चलने का निशान बनता है फिर मैं तो एक मनुष्य हूं। कुमार अंबुज
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ब्लागर
अच्छी रचना.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआभार!
Deleteवाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद!
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