Tuesday, 26 February 2013

प्रणय हिलोरें लेता रहता


प्रणय हिलोरें लेता रहता

हम दोनों एक दूजे के संग
अतिशय बंधे बंधन में,
चुना नहीं पर स्वीकारा
अंर्तमन से,
जीवन की न जाने
कितनी गांठें खोलता रहता

नहीं क्षितिज के भाव जैसा
चांद चकोर सा प्रेम नहीं
फिर भी रस से परिपूर्ण कर गया
न जाने कितने एहसास भर गया
एक नई कहानी रचता रहता

तुम अविकल, स्थिर, दृढ़, चंचल
मेरे जीवन को गति दे गए
एक नया आकार गढ़ गए
अविराम समय की धारा में
मुझको बह जाने से रोके रहता

प्रणय हिलोरें लेता रहता

                 - बृजेश नीरज

4 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुतीकरण.

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  2. प्रभावशाली है ..
    बधाई !

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  3. रचना नें शब्द संयोजन बहुत सुन्दर है।
    शुभकामनाऐं आपको...

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