जो शरीफ हैं
शराफत की बात करते हैं
वो सिरफिरे
इंकलाब की बात करते हैं
सुबह होने तक
इंतजार नहीं कर सकते
इस रात में
ही सफर की बात करते हैं
ओस की बूंदों
से ही सिहर गया बदन
वो बारिश में
भीगने की बात करते हैं
हर तरफ बस रेत
ही रेत नजर आती
सायः-ए-शाखे-गुल
की बात करते हैं
इन गलियों में
कोई किरन नहीं आती
लोग धूप और
छांव की बात करते हैं
हालात की नज़ाकत
की समझ ही नहीं
जनाजे में हैं
जिंदगी की बात करते हैं
- बृजेश नीरज
बहुत सुन्दर प्रस्तुति मित्र | आपकी कविता पढ़कर आनंद आ गया | बधाई |
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
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